अलंकार का शाब्दिक अर्थ “सजावट” या “आभूषण” होता है। चुकी यह शब्दो/वाक्योंं को सजाता है इसलिये इसे अल्न्कार कहते है। इसे हिंदी साहित्य में उपमा, रस, छंद, यमक, अनुप्रास और अतिशयोक्ति आदि नामों से जाना जाता है।
अलंकार का प्रयोग करके साहित्यिक रचना को बेहतरीन ढंग से सजाया जा सकता है और उसकी कल्पना को स्पष्ट तथा सुंदर बनाया जा सकता है। आइये विस्तार से जाने।
अलंकार किसे कहते है? – alankar kise kahate hain
अलंकार का शाब्दिक सजावट या आभूषण होता है।जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषणों के सजाने से होती है उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है। अर्थात अलंकार शब्दो को सजाने का कार्य करता है। या यू कहे की जो शब्द आपके वाक्यांश को अलंकृत करें वह अलंकार कहलाता है।
अलंकार के भेद – alankar ke bhed
भाषा के दो प्रमुख अंग होते हैं। शब्द और अर्थ,, इसलिए काव्य में चमत्कार शाब्दिक अथवा अर्थ गत हो सकता है।इसी आधार पर अलंकार के मुख्य दो भेद माने गए हैं।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार।
शब्दालंकार – Shabdalankar
जहां कुछ विशेष शब्दों के कारण अभिव्यक्ति में सुन्दरता आतीं हैं वहां शब्दालकार होता है। इसके प्रयोग से काव्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है। अर्थात जिसमें शब्दों का प्रयोग करने से कोई चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार कहीं गायब हो जाता है तो, ऐसी प्रक्रिया को शब्दालंकार कहा जाता है। जैसे-
कीरति भनिति भूति भली सोई
सुरसरि सम सब कर हित होई।
इन पंक्तियों में त,भ, तथा स वर्ण की आवृत्ति से सौन्दर्य उत्पन्न किया गया है।
शब्दालंकार के भेद
शब्दाअलकार के प्रमुख तीन भेद होते हैं।
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार – अनुप्रास अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अनु + प्रास, अनु का अर्थ होता है बार बार तथा प्रास अर्थ वर्ण से है जब किसी भी वर्ण की बार-बार आवृत्ति हो तब जो चमत्कार होता है वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। उदाहरण –
जन रंजन भंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप
विश्व बदर इव द्रुत उधर जोवत सोवत सूप
चारू चंद की चंचल किरणें,खेल रही थी जल थल में।
यमक अलंकार – जहां एक ही शब्द एक से अधिक बार लिखा गया हों, किन्तु उनके अर्थ भिन्न भिन्न हो। वहां यमक अलंकार होता है। जैसे-
कनक कनक ते सौ गुना, मादकता अधिकाय।
भजन कहयो तासो भज्यो, भज्यो न एको बार।
एक ही शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार अलग अलग अर्थों में हुआ है। अर्थ में भिन्नता होने के कारण ये यमक अलंकार के उदाहरण है।
श्लेष अलंकार– जब एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो, लेकिन उसके दो या दो अधिक अर्थ निकलते हों,तब श्लेष अलंकार होता है। श्लेष का अर्थ है चिपका हुआ। जैसे,,,,
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गये न उबरे मोती मानुष चून
यहा पानी शब्द का प्रयोग मोती मानुष चून,इन तीनों के सन्दर्भ में भिन्न भिन्न रूपों में हुआ है। मोती के लिए इसका अर्थ है चमक, मानुष के लिए सम्मान, और चूना के लिए जल। एक ही शब्द के अलग अलग सन्दर्भों में भिन्न अर्थ होने के कारण ही यह श्लेष अलंकार का उदाहरण है।
अर्थालंकार – Arthalankar
जिस जगह पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो उस जगह अर्थालंकार होता है। जैसे
उदति उदायागिरि मंच पर रघुबर बाल पतंग।
विकसे सन्त सरोज सब हरसे लोचन भृग।
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अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के निम्न लिखित पांच भेद होते हैं
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षाअलकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
उपमा अलंकार- जहां किसी वस्तु या व्यक्ति की किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से समान गुण -धर्मो के आधार पर तुलना की जाए या समानता बताती जाए , उसे उपमा अलंकार कहते हैं
रूपक अलंकार – जब उपमेय को उपमान के रूप में दर्शाया जाय या गुणों की समानता के कारण,दो वस्तुओं या प्राणियों में समानता दिखाई जाय, तो रूपक अलंकार होता है। उदाहरण,,,चरण कमल बन्दौ हरिराई। – यहां ईश्वर के चरण को कमल के समान बताया गया है।
उत्पेरक्षा अलंकार– जब उपमेय में उपमान की भिन्नता जानते हुए भी उपमान की सम्भावना की जाती है। वहां उत्पेक्षा अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार– जहां किसी गुण का इतना बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया जाय कि लोक सीमा का अतिक्रमण होने लगे तो अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
पानी परात को हाय छुआ नहीं
नैनन के जल सो पग धोएं
अन्योक्तिय अलंकार– जहां अ प्र स्तुत के उल्लेख के द्वारा प्रस्तुत का उल्लेख किया जाय वहां अन्योक्तिय अलंकार होता है। जैसे-
जिन, दिन देखें वे कुसुम, गई सु बीति बहार।