रैयतवाड़ी व्यवस्था, स्वतंत्रता पूर्व से चली आ रही एक कृषि व्यवस्था थी इस व्यवस्था के अंतर्गत पंजीकृत भूमिदार को भूमि (जमीन) का मालिक माना गया था. तथा टैक्स जमा करने का दायित्व भी भूमि के स्वामी यानी किसान को ही दिया गया था. अन्य भू-राजस्व प्रणालियों के अपेक्षा यह व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से किसानों के लिए लागू की गई थी. आज के इस आर्टिकल में हम रैयतवाड़ी व्यवस्था को विस्तार से जानेंगे, साथ ही इस व्यवस्था का हमारे समाज पर क्या प्रभाव रहा इसकी भी विवेचना करेंगे.
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है?
हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है हजारों वर्षों से यहाँ के लोगों के लिए मुख्य आजीविका का स्रोत खेती-किसानी ही रही है लेकिन समय के साथ हुए परिवर्तन में भूमि का केन्द्रीयकरण होता चला गया, अर्थात भूमि पर किसानों का हक़ न होकर जमींदार या अन्य विशेष वर्ग का हो गया, ऐसे में किसान वर्ग को अधिक संघर्ष के साथ-साथ अन्य कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा.
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के किसानों पर कई दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था लागू की गई, जिसके कारण कृषि का आधुनिकरण संभव नहीं हो पाया, रैयतवाड़ी व्यवस्था भी ऐसी ही व्यवस्था है जो किसानों या आम जनता के लिए लागू की गई थी.
इस व्यवस्था के अंतर्गत पंजीकृत भूमि स्वामी को भूमि का मालिक माना गया है. तथा लगान या टैक्स जमा करने का भी दायित्व भूमि के स्वामी यानी किसान को दिया गया है. साथ ही अगर किसान निश्चित लगान की रकम जमा नहीं कर पाता है तो उसे भूमि से वंचित कर दिया जाएगा. इस व्यवस्था का जन्मदाता टॉमस मुनरो और कैप्टन रीड को माना जाता है. सर्वप्रथम इस व्यवस्था को बारामहल जिले में लागू किया गया था.
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रैयतवाड़ी व्यवस्था के बारे में संक्षेप में
- इस व्यवस्था के जन्मदाता टॉमस मुनरो और कैप्टन रीड को माना जाता है
- सर्वप्रथम यह व्यवस्था 1792 में बारामहल में लागू की गई थी.
- इस व्यवस्था में पंजीकृत भूमि मालिक को ही भूमि का स्वामी माना गया था
- इस व्यवस्था में लगान या टैक्स जमा करने का दायित्व किसानों को ही दिया गया.
- 1820 में इस व्यवस्था को मद्रास में लागू किया गया, उसके बाद 1825 में बंबई और 1858 तक सम्पूर्ण दक्कन और अन्य क्षेत्रों में लागू कर दिया गया.
रैयतवाड़ी व्यवस्था की शुरुआत कैसे हुई?
सामान्यतः इस व्यवस्था को पढ़ने पर अच्छी प्रतीत होती है लेकिन यह व्यवस्था जमींदारी व्यवस्था से कम हानिकारक नहीं थी ब्रिटिश सरकार का इस व्यवस्था को लागू करने का मुख्य उद्देश्य बिचौलियों (जमींदार वर्ग निश्चित लगान से अधिक वसूलता था तथा सरकार को निश्चित लगान देता था ऐसे में जमींदार वर्ग को अधिक फ़ायदा और सरकार को कम होता था) इसीलिए रैयतवाड़ी व्यवस्था की शुरुआत की गई.
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बिचौलिया को हटाकर सरकार ने अच्छा कदम उठाया, बल्कि जो लगान जमींदार वर्ग वसूल कर देता था उसे अब किसान स्वयं देते थे, साथ ही अगर किसान उस निश्चित रकम को देने में असमर्थ है तो उसे भूमि के मालिकाना से वंचित कर दिया जाता था.
रैयतवाड़ी और ज़मींदारी व्यवस्था में अंतर
रैयतवाड़ी और ज़मींदारी दोनो व्यवस्थाए स्वतंत्रता पूर्व से चली आ रही एक कृषि व्यवस्था है जिसे ब्रिटिश कम्पनी द्वारा शुरु किया गया था, रैयतवाड़ी व्यवस्था, ज़मींदारी व्यवस्था से काफी भिन्न थी इसके प्रमुख अंतर निम्नलिखित है.
रैयतवाड़ी व्यवस्था: किसान सीधे सरकार को भूमि कर का भुगतान करते थे और भूमि का स्वामित्व उनके पास होता था।
ज़मींदारी व्यवस्था: किसान ज़मींदारों को भूमि कर का भुगतान करते थे और ज़मींदार सरकार को कर का भुगतान करते थे। भूमि का स्वामित्व ज़मींदारों के पास होता था, न कि किसानों के पास।
रैयतवाड़ी व्यवस्था का प्रभाव
वैसे तो यह व्यवस्था सकारात्मक प्रतीत होती है लेकिन जमीदारी व्यवस्था की ही तरह यह भी हानिकारक थी इसने भारतीय समाज पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ा, इस व्यवस्था ने किसानों को स्वामित्व का अधिकार तो दिया, लेकिन उच्च कर दरों और सरकारी कठोरता के कारण कई किसानों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जिससे किसान गरीबी के चक्र में और फसते चले गए.
इस व्यवस्था में भले ही सरकार ने किसानो को भूमि का मालिक बना दिया था, लेकिन लगान की राशि, और बर्बरता से वसूले जाने वाले व्यवस्था के कारण किसानो को बुरी तरह से प्रभावित किया, इस व्यवस्था के अंतरगत जो किसान लगान देने में असमर्थ थे उनसे जमीन छीन ली जाती थी अर्थात उन्हें जमीन के मालिकाना से वंचित कर दिया जाता था.
- इस व्यवस्था में लगान का निर्धारण उत्पादकता पर न करके भूमि पर किया गया, जो किसान के अहित में था।
- इस व्यवस्था में लगान की दर इतनी ज्यादा थी कि किसान के पास कुछ नहीं बचता था।
- इस व्यवस्था में प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों को कोई राहत नहीं मिलती थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था सम्बंधित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है?
उत्तर: रैयतवाड़ी व्यवस्था ब्रिटिश शासन द्वारा भारत में लागू की गई भूमि राजस्व प्रणाली थी, जिसमें भूमि के स्वामित्व का अधिकार सीधे किसानों (रैयतों) को दिया गया था। इसमें किसान सीधे सरकार को भूमि कर (राजस्व) का भुगतान करते थे।
प्रश्न 2: भूमि का केन्द्रीयकरण का मतलब क्या है?
उत्तर: भूमि का केन्द्रीयकरण का मतलब है कि भूमि पर किसानों का हक न होकर जमींदार या अन्य विशेष वर्ग का हो गया।
प्रश्न 3: भूमि के केन्द्रीयकरण का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: भूमि के केन्द्रीयकरण के कारण किसानों को अधिक संघर्ष और अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 4: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के किसानों पर कौन-कौन सी दोषपूर्ण भूमि व्यवस्थाएँ लागू की गईं?
उत्तर: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के किसानों पर कई दोषपूर्ण भूमि व्यवस्थाएँ लागू की गईं, जिनमें से एक रैयतवाड़ी व्यवस्था भी शामिल है।
प्रश्न 5: रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत किसे भूमि का मालिक माना गया?
उत्तर: रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत पंजीकृत भूमि स्वामी को भूमि का मालिक माना गया।
प्रश्न 6: रैयतवाड़ी व्यवस्था में लगान या टैक्स जमा करने की जिम्मेदारी किसकी होती थी?
उत्तर: रैयतवाड़ी व्यवस्था में लगान या टैक्स जमा करने की जिम्मेदारी भूमि के स्वामी यानी किसान की होती थी।
प्रश्न 7: अगर किसान निश्चित लगान की रकम जमा नहीं कर पाता था तो क्या होता था?
उत्तर: अगर किसान निश्चित लगान की रकम जमा नहीं कर पाता था तो उसे भूमि से वंचित कर दिया जाता था।
प्रश्न 8: रैयतवाड़ी व्यवस्था का जन्मदाता किसे माना जाता है?
उत्तर: रैयतवाड़ी व्यवस्था का जन्मदाता टॉमस मुनरो और कैप्टन रीड को माना जाता है।
प्रश्न 9: सर्वप्रथम रैयतवाड़ी व्यवस्था को कहाँ लागू किया गया था?
उत्तर: सर्वप्रथम रैयतवाड़ी व्यवस्था को बारामहल जिले में लागू किया गया था।