शिवाजी महाराज को छत्रपति, सूरवीर, संग्रामी व राष्ट्रनायक के रुप मे भी जाना जाता है इनका जन्म 19 फरवरी 1630 मे हुआ था इसलिये हर वर्ष 19 फरवरी को शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है. लेकिन क्या आप जानते है कि शिवाजी कि मृत्यू कैसे हुई थी, आखिर उनके मृत्यू का कारण क्या था? आइये जानते है.
शिवाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई?
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु विष के कारण 3 अप्रैल 1680 ई0 को रायगढ़ के किले में हुआ था लेकिन कुछ इतिहासकार ये भी मानते है कि महाराज शिवाजी की मृत्यु तबीयत खराब होने के कारण हुई थी. शिवाजी महाराज के मृत्यु के पश्चात, उत्तराधिकारी महाराज संभाजी बने, जो शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे
शिवाजी महाराज का इतिहास
वर्तमान मे शिवाजी महाराज को कौन नही जानता, पूरे विश्व मे शिवाजी महाराज को ख्याति प्राप्त है आज भारत मे महराज शिवा जी को सबसे बड़े योद्धा के साथ-साथ हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के रुप मे भी जाना जाता है.
शिवाजी महाराज का पूरा नाम छत्रपति शिवाजीराजे भोसले था इनका जन्म 19 फरवरी 1630 ई. मे हुआ थे शिवा जी के माता का नाम जीजाबाई एवं पिता का नाम शहाजीराजे भोसले था, शिवाजी महाराज का कूल 8 विवाह हुआ था, उनके पत्नियों का नाम निम्न है – सईबाई निंबालकर , सोयराबाई मोहिते, सकवरबाई गायकवाड, सगुणाबाई शिर्के, पुतलाबाई पालकर, काशीबाई जाध, लक्ष्मीबाई विचारे, गुंवांताबाई इंगले
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शिवा जी महाराज का व्यक्तित्व
महाराज शिवाजी को एक छत्रपति, योध्दा और एक कुशल सम्राट के रुप मे जाना जाता है। कूटनीति में उनकी चतुराई ने अनेको बार उनकी सेना को बड़ी सफलता दिलाई। शिवाजी महाराज की रणकौशल की बदौलत मराठा साम्राज्य का विस्तार पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला।
वे अपनी प्रजा के प्रति बहुत सजग और संवेदनशील थे। उनका राज्य लोककल्याणकारी आदर्शों पर आधारित था। महाराज शिवाजी की धर्मनिरपेक्षता की रणनीति भी उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण पहलु था वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनके शासन में सभी धर्मावलंबियों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त था। यही कारण है कि वे आज भी भारत में एक महान नायक के रुप मे पूजे जाते हैं।
शिवाजी महाराज के युद्ध अभियानों की रणनीति और उनके गुरिल्ला युद्ध कौशल ने उन्हें एक अद्वितीय रणनीतिकार के रूप में स्थापित किया। उनका जीवन आज भी लोगों को प्रेरणा देता है, और उनकी वीरता और नेतृत्व कौशल की कहानियाँ हमारी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। इसलिए, भारतीय इतिहास में उनका स्थान हमेशा एक वीर योध्दा, आदर्श सम्राट और एक जननायक के रूप में स्थिर रहेगा।
शिवा जी महाराज की धार्मिक नीति
शिवाजी महाराज ने न सिर्फ अपने धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा रखी, बल्कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे उनके हृदय में सभी धर्मों के लिए समान स्थान था और इसी कारण उनके राज में मुसलमानों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। उन्होंने हमेशा अपने हिन्दू मूल्यों को संवारा, फिर भी मस्जिदों के निर्माण में भी अपना आर्थिक सहयोग दिया।
शिवाजी महाराज के समय मे हिन्दू पंडितों के सम्मान के साथ-साथ मुसलमान सन्तों और फकीरों को भी समाज में बराबरी का मान-सम्मान मिला। उन्होने अपनी सेना मे एक बडा हिस्सा मुसलमान सैनिकों तथा अधिकारियों को भी शामिल किया था।