अकबर की धार्मिक नीति: अकबर की धार्मिक नीति ‘सार्वभौमिक सहिष्णुता’ की थी अकबर का जन्म 15 अक्तूबर 1542 को अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में हुआ था।
अकबर ने भारतीय समाज मे व्याप्त कई कुरुतियो जैसे- 1562 ई. में दास प्रथा, 1563 ई. में तीर्थ यात्रा-कर तथा 1564 ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया था। आइये आगे की लेख मे अकबर की धार्मिक नीति को जानते है।
अकबर की धार्मिक नीति
अकबर की धार्मिक नीति का मूल उद्देश्य- ‘सार्वभौमिक सहिष्णुता’ थी। इसे ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति कहा जाता था। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक ‘इबादतखाना’ (प्रार्थना-भवन) की स्थापना 1575 ई. में करवाई।
अकबर की धार्मिक नीति निम्नलिखित है।
- अकबर प्रारंभ में ‘इबादतखाने’ में केवल इस्लाम धर्मोपदेशकों को ही आमंत्रित करता था। बाद में 1578 ई. में सभी धर्मों के विद्वानों को आमंत्रित करने लगा अर्थात् उसे ‘धर्मसंसद’ बना दिया।
- अकबर ने सभी धमों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये 1582 ई. में ‘तौहीद-ए-इलाही’ (दैवी एकेश्वरवाद) या ‘दीन-ए-इलाही’ नामक एक नया धर्म प्रवर्तित किया।
- इस नवीन संप्रदाय (दीन-ए-इलाही) का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था। हिंदुओं में केवल महेशदास (उर्फ बीरबल) ने ही इसे स्वीकार किया था।
- ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म में दीक्षित शिष्य को चार चरणों अर्थात् ‘चहारगाना-ए-इख्लास’ को पूरा करना होता था।
- अकबर 1579 ई. में ‘महजरनामा’ या एक घोषणा जारी करवाई।
- ‘महजर’ जारी होने के बाद अकबर ने ‘सुल्तान-ए-आदिल’ (न्यायप्रिय शासक) की उपाधि धारण की। इस दस्तावेज (महजर) में उसे ‘अमीर-उल-मोमिनीन’ कहा गया है।
- 1583 ई. से पहले अकबर की मुद्राओं पर ‘कलमा’ और ‘खलीफाओं का विवरण’ अंकित होता था, किंतु 1583 ई. के बाद उन पर सूर्य और चंद्रमा की महिमा का बखान करने वाले पद्य अंकित किये जाने लगे।
- अकबर ने जैन धर्म के आचार्य ‘हरिविजय सूरि’ को ‘जगतगुरु’ तथा जिनचंद्रसूरि को ‘युगप्रधान’ की उपाधि दी थी।
- अकबर ने ‘झरोखा दर्शन’, तुलादान तथा पायबोस जैसी पारसी परंपराओं को आरंभ किया।
- अकबर ने सिखों के तीसरे गुरु अमरदास से भेंट की तथा उनकी पुत्री के नाम कई गाँव प्रदान किये।
- अकबर ने सिखगुरु रामदास को 1577 ई. में 500 बीघा जमीन प्रदान की, जिसमें एक प्राकृतिक तालाव भी था। यहीं पर कालांतर में अमृतसर नगर बसा और स्वर्ण मंदिर का निर्माण कराया गया।
- फतेहपुर सीकरी के निर्माण का खाका (Diagram) बहाउद्दीन ने तैयार किया था।
- अकबर के दरबार में 1580 ई. में (फतेहपुर सीकरी) आने वाले प्रथम जेस्सुइट मिशन का नेतृत्व फादर एकाबीवा ने किया था।
- अकबर की धार्मिक नीति: अकबर ने सती प्रथा को रोकने का प्रयास किया, विधवा विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गई, शराब की बिक्री पर रोक लगाई तथा लड़के एवं लड़कियों के विवाह की आयु 16 और 14 वर्ष निर्धारित की।
- अकबर शेख सलीम चिश्ती का परम भक्त था और उन्हीं के नाम पर अपने बेटे का नाम सलीम रखा।
इबादत खाने में आमंत्रित धार्माचार्य
- हिंदू धर्म- देवी एवं पुरुषोत्तम
- जैन धर्म- हरिविजय सूरि, जिन चंद सूरि, विजयसेन सूरि तथा शांति चंद्र इत्यादि।
- पारसी धर्म- दस्तूर मेहर जी राणा
- ईसाई धर्म- एकबीबा और मोंसेरात
- अकबर ने वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथ को ‘गोकुल’ एवं जैतपुरा की जागीर दी थी।
Note: अकबर का राज्याभिषेक 14 फरवरी, 1556 ई. को पंजाब के गुरुदासपुर जिले के कालानौर नामक स्थान पर बैरमखाँ की देख-रेख में मिर्जा अबुल कासिम ने किया था। शासक बनने के बाद 1556 से 1560 तक अकबर बैरम खाँ के संरक्षण में रहा।