Chol vansh: चोल राजवंश 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के दौरान (850 ई. से 1279 ई.) दक्षिण भारत में एक प्रमुख राजवंश था। इस राजवंश ने न सिर्फ दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप पर शासन किया अपितु उत्तर में बंगाल, दक्षिणी म्याँमार (अराकान व पेंगू) को भी विजित किया।
इस राजवंश ने सामुद्रिक राज्य विस्तार भी किया, परिणामस्वरूप पश्चिम में मालदीव एवं लक्षद्वीप के साथ-साथ दक्षिण में सिंघल द्वीप (आधुनिक श्रीलंका) के पूर्व में मलाया एवं मलक्का जल संधि तक अपना साम्राज्य विस्तार किया तथा प्रभाव स्थापित किया। इसी कारण इतिहास में यह कथन प्रचलित है कि “राजेंद्र प्रथम के समय में बंगाल की खाड़ी एक झील बन गई”।
चोल राजवंश – Chol Vansh
Chol Vansh ka Itihas: चोल राज्यवंश का संस्थापक विजयालय को माना जाता है यह राजवंश 9वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारत का एक प्रमुख राजवंश था। चोल राजवंश ने एक सुसंगठित, सुव्यवस्थित राजतंत्र की स्थापना की जिसके ग्राम प्रशासन/स्थानीय प्रशासन की विशिष्टता आज भी अनुकरणीय है। ग्राम प्रशासन के प्रमाण उत्तरमेरूर अभिलेख (919 ई. एवं 929 ई.) में मिलते हैं।
चोल काल द्रविड़ मंदिर स्थापत्य कला के चरमोत्कर्ष का भी काल था, इस दौरान विशाल व भव्य मंदिर, विशाल गोपुरम के साथ भव्य मूर्तिकारी व चित्रकला से युक्त हैं। उदाहरण-राजराजेश्वर मंदिर, बृहदीश्वर मंदिर। यह मंदिर शिव को समर्पित है तथा इसे राजराज नामक शासक ने बनवाया था। चोल काल अपनी धातु मूर्तिकला के लिये भी जाना जाता है। तंजौर से मिली नटराज की मूर्ति इसका विशिष्ट प्रमाण है।
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चोल वंश के शासक (Chol Vansh ke Sashak)
चोल राज्यवंश का संस्थापक विजयालय (850-871 ई.) को माना जाता है यद्यपि यह संप्रभु शासक नहीं था। यह सामंत शासक के समान एक छोटे से क्षेत्र का प्रधान था। विजयालय का पुत्र आदित्य पल्लव (871-907 ई.) शासक अपराजित का सामंत था। इसने पुरबियम के युद्ध में पल्लव राजवंश की न सिर्फ सहायता की थी अपितु इसी युद्ध के माध्यम से पांड्य राजवंश का पतन हुआ था।
आदित्य ने अपराजित की हत्या कर पल्लव क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया परंतु स्वयं को संप्रभु शासक घोषित नहीं किया। आदित्य ने अपने पुत्र परांतक का विवाह चेर राजवंश की राजकुमारी से किया तथा स्वयं के राजनीतिक कद को बढ़ाया। अत: परांतक प्रथम (907-955 ई.) यह चोल वंश का पहला संप्रभु शासक था। इसने मदुरा के पांड्य शासक राजसिंह II तथा सिंघल राज्य (श्रीलंका) की संयुक्त सेना को वेल्लूर के युद्ध में हराकर “मदुरैकोंड” (मदुरा का विजेता) की उपाधि धारण की। चोल वंश के सभी शासको के नाम निम्नलिखित है।
चोल वंशावली के शासक
शासक | समय ई० |
---|---|
विजयालय चोल | 848–870 |
आदित्य चोल १ | 870–907 |
परन्तक चोल १ | 907–955 |
गंधरादित्य चोल | 955–957 |
अरिंजय चोल | 956–957 |
परन्तक चोल २ | 957–970 |
उत्तम चोल | 970–985 |
राजाराज चोल प्रथम महान | 985–1014 |
राजेन्द्र चोल प्रथम महान | 1014–1044 |
राजाधिराज चोल १ | 1044–1054 |
राजेन्द्र चोल २ | 1054–1063 |
वीरराजेन्द्र चोल | 1063–1070 |
अधिराजेन्द्र चोल | 1070 |
चोल राजवंश का साम्राज्य विस्तार (Chol Rajavansh Ka Samrajy Vistar)
Chol Rajavansh Ka Samrajy: चोल राजवंश प्राचीन भारतीय इतिहास का पहला राजवंश था जिसने सामुद्रिक विस्तार किया था। पश्चिम में मालद्वीप से लेकर पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य तथा दक्षिण में श्रीलंका की विजय कर चोल राजवंश की राजनीतिक सत्ता स्थापित की थी। स्थलीय साम्राज्य विस्तार करते हुए चोलों ने सुदूर उत्तर में बंगाल तक का प्रांत विजित किया था। वर्मा (म्यांमार) नामक देश का दक्षिणी हिस्सा विशेषकर अराकान व पेगू क्षेत्र की विजय की थी।
संपूर्ण दक्षिणी प्रायद्वीप को विजित करते हुए चोलों ने कलिंग, पल्लव राज्य क्षेत्र, पांड्य राज्य क्षेत्र, चालुक्य व राष्ट्रकूट राज्य क्षेत्रों को विजित किया था। इस प्रकार चोल राजवंश ने एक बड़ा स्थलीय व सामुद्रिक साम्राज्य स्थापित किया था। चोल राजवंशों का ग्राम प्रशासन विकेंद्रीकृत, स्वायत्त तथा उत्कृष्ट विशिष्टताओं से युक्त था।
राजराज ने केरल के राजा रविंद्र वर्मा को त्रिवेंद्रम नामक स्थान पर पराजित कर ‘कांडलूर शालकालै मरूत’ की उपाधि धारण की। राजराज ने पांड्य राजा अमर भुजंग को पराजित कर सुदूर दक्षिण तक के क्षेत्र को विजित कर लिया जिसके प्रमाण तिरुवलंगाडु ताम्रपत्र में मिलते हैं।
राजराज ने सिंघल द्वीप के राजा महिंद्र पंचम पर भी हमला किया तथा आधा सिंघल द्वीप जीत लिया। आक्रमण का कारण था कि सिंघल के राजा ने पांड्य राजा के साथ मिलकर चोल राज्य पर हमला बोला था। राजराज ने सिंघल की राजधानी अनुराधापुर को विनष्ट कर एक नवीन राजधानी पोलोन्नरूवा में स्थापित किया तथा अपने पुत्र राजेंद्र -1 को वहाँ का उपराजा नियुक्त किया।
राजराज ने श्रीलंका स्थापित अपनी नई राजधानी को जन्नाथमंगलम का नाम दिया तथा यहाँ पर भारतीय शैली के कुछ मंदिरों का निर्माण भी करवाया। राजराज ने मालद्वीप क्षेत्र को भी विजित किया।