असहयोग आंदोलन की भूमिका या असहयोग आंदोलन क्या है – महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश अंग्रेजी सरकार के सहयोगी के रूप में किया था, क्योंकि उन्हें अंग्रेजी सरकार की इमानदारी व न्यायप्रियता में विश्वास था।
परन्तु वर्ष 1919 में भारत में अनेकों ऐसी घटनाएं घटी, जिसने गांधी जी को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश किया इन घटनाओं में दमनकारी रालेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड आदि घटनाएं प्रमुख थी।
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असहयोग आंदोलन कब शुरू हुआ
असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को शुरू हुआ था, क्योंकि इसी दिन बालगंगाधर तिलक का निधन हो गया था। कांग्रेस ने गांधी जी के इस योजना को स्वीकार कर लिया। जब ब्रिटिश ने कांग्रेस की मांगों को मानने से इंकार कर दिया तथा जून 1920 में इलाहाबाद में सर्वदलीय सभा में विदेशी वस्तुओं, स्कूलों, कालेजों, न्यायलयों आदि के बहिष्कार का कार्यक्रम बनाया।
तब सितम्बर 1920 में कांग्रेस ने एक विशेष सत्र कलकत्ता में बुलाया और इसमें अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन जिसका अंतिम लक्ष्य स्वराज्य था, शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया।
असहयोग आंदोलन के कारण
असहयोग आंदोलन का मुख्य कारण निम्नलिखित कारण थे
प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण महंगाई बहुत बढ़ गई। छोटी जाति के लोग इस मंहगाई से बहुत परेशान हो गए थे।इन परिस्थितियों ने भारतीयों में अंग्रेजी विरोधी भावनाओं का विकास कर इन्हें अंग्रेजों से आन्दोलन हेतु प्रोत्साहित किया।
रालेट एक्ट जलियांवाला बाग़ हत्याकांड जैसी घटनाओं ने विदेशी शासकों के कूर एवं असभ्य व्यवहार को उजागर कर दिया। पंजाब में अत्याचारों के सम्बन्ध में हण्टर कमेटी की सिफारिशों ने सबकी आंखें खोल दी।
असहयोग आंदोलन प्रकृति
असहयोग आंदोलन प्रगतिशील अहिंसात्मक आंदोलन था, इसके अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार के प्रति शांतिपूर्ण अहिंसक असहयोग की रणनीति अपनाई गई थी, जिसके अंतर्गत दो प्रकार के कार्यक्रम निश्चित हुएं, जहां उपाधियों की वापसी, और सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र, न्यायालय का बहिष्कार नकारात्मक प्रवृत्ति के थे,तिलक कोष तथा स्कूल कालेजों की स्थापना आदि रचनात्मक प्रकृति के थे।
असहयोग आंदोलन के रचनात्मक कार्यक्रम
असहयोग आंदोलन चलाने के लिए तिलक स्वराज्य कोष स्थापित किया गया।इस कोष में छः महीने के अन्दर ही एक करोड़ रुपए जमा हो गए,।इस आन्दोलन में स्त्रियों ने भी बहुत उत्साह दिखाया और अपने गहने जेवरात का खुलकर दान किया, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर एक जन आंदोलन बन गया और पूरे देश में जगह जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई।खादी स्वतन्त्रता का प्रतिक वन गयी इसके साथ साथ बीस लाख चरखों का वितरण किया गया, राष्ट्रीय शिक्षा की दिशा में प्रयास करना, स्वदेशी माल खरीदने पर देश और लोक अदालतों की स्थापना करना प्रमुख रचनात्मक कार्यक्रम थे।
आन्दोलन की समाप्ति कब हुई
5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा नामक स्थान पर आन्दोलन कारियो के जूलूस पर पुलिस ने गोलियां चलाई,जिस कारण भीड़ आक्रोशित हो गयी और पुलिस थाने में आग लगा दी गई, जिसमें एक थानेदार समेत 22 सिपाहियों को जिन्दा जला दिया गया।
इस हिंसक घटना से गांधी जी ने दुखी होकर आन्दोलन वापस लेने का निर्णय लिया। गांधीजी ने 12 फरवरी को बारदौली में कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक बुलाई, जिसमें चौरी चौरा कांड के कारण सामूहिक सत्याग्रह व असहयोग आंदोलन स्थगित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
आन्दोलन के परिणाम
यह देश का पहला राष्ट्रीय आंदोलन था जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों ने साथ दिया, जैसे किसानों शिक्षकों, छात्रों, महिलाओं और व्यापारियों को साथ लाने का काम किया।इसे वास्तविक जनाधार प्राप्त हुआ क्योंकि यह तेजी से देश के सभी हिस्सों में फ़ैल गया।इस आन्दोलन ने लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव जगाया एवं देश की आजादी के लिए त्याग करने की भावना को जागृत किया।
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