महासागरीय प्रदूषण (Ocean Pollution) का तात्पर्य उन समस्त प्रदूषणो से है जिससे महासागर का जल दुष्प्रभावित होता है। वर्तमान समय मे मानव के गतिविधियों ने महासागरीय जल को अत्यंत प्रदूषित किया है जिसके परिणामस्वरुप महासागरीय जीवों की क्षति, जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ अन्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
महासागरीय प्रदूषण क्या है? (What is Ocean Pollution Hindi)
महासागरीय प्रदूषण (Ocean Pollution) वह स्थिति है जब महासागर या अन्य बड़े जल स्रोतों में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ जाती है। अर्थात महासागरीय जल प्रदूषित हो जाता है। इसका सीधा प्रभाव महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र पर होता है साथ ही यह जलवायु परिवर्तन का भी प्रमुख कारण बनता है।
पृथ्वी पर विशालतम जलीय निकाय महासागर है। पिछले कुछ दशकों से मानवीय क्रियाओं के कारण समुद्र गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। मानव द्वारा समुद्र में हानिकारक पदार्थों, जैसे- प्लास्टिक, औद्योगिक एवं कृषि अपशिष्टों, तेल एवं रासायनिक पदार्थों के निक्षेपण से समुद्र प्रदूषित हुए हैं।
महासागरीय प्रदूषण के कारण (Causes of Marine or Ocean Pollution Hindi)
समुद्री प्रदूषण (Marine pollution) के महत्त्वपूर्ण कारकों में प्लास्टिक, कीटनाशक एवं उर्वरक, समुद्री खनन और फिशिंग लाइन (मछली पकड़ने वाले जाल) प्रमुख हैं। अन्य महासागरीय प्रदूषण के कारक निम्नलिखित है।
- नदियों एवं वर्षा जल द्वारा लाया गया सीवेज, कृषि अपशिष्ट, कूड़ा-करकट, कीटनाशक एवं उर्वरक, भारी धातुएँ, प्लास्टिक आदि समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करते हैं।
- समुद्री प्रदूषण (Marine pollution) के कारण- समुद्र में तेल एवं पेट्रोलियम पदार्थों का विसर्जन एवं रेडियोएक्टिव अपशिष्टों की डंपिंग से भी समुद्री प्रदूषण में वृद्धि होती है। तथा विषाक्त रसायन एवं भारी धातुएँ जो औद्योगिक अपशिष्टों के साथ आकर समुद्र में मिल जाती हैं, समुद्री पारिस्थितिकी को नष्ट करती हैं।
- महासागरीय प्रदूषण (Ocean Pollution) प्रमुख कारणो मे सागर तक का खनन भी शामिल है, सागर तल में खनन से भारी धातुओं का जमाव हो जाता है। इसके कारण उस स्थान पर विषाक्त प्रभाव पड़ता है एवं सागरीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये स्थायी एवं गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप अम्ल वर्षा होती है। यह अम्ल वर्षा समुद्र में हो तो समुद्री जीवों की मृत्यु हो जाती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सागरीय जल का तापमान भी बढ़ रहा है जिससे सागरीय जल की जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।
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समुद्र मे प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण (Plastic Pollution in the Ocean)
प्लास्टिक पेट्रोलियम से बना एक सिंथेटिक कार्बनिक बहुलक है जिसमें पैकेजिंग, भवन एवं निर्माण, घरेलू एवं खेल उपकरण, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिये आदर्श रूप से अनुकूल गुण हैं। प्लास्टिक सस्ता, हल्का, मजबूत और लचीला है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कम से कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में समा जाता है।
प्रत्येक वर्ष 300 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है जिसमें से आधे का उपयोग शॉपिंग बैग, कप और स्ट्रॉ जैसी एकल-उपयोग वाली वस्तुओं को डिजाइन करने के लिये किया जाता है। केवल 9% प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण किया जाता है। लगभग 12% को जला दिया जाता है जबकि 79% लैंडफिल में जमा हो जाता है।
इसके अलावा, माइक्रोबीड्स, एक प्रकार का माइक्रोप्लास्टिक है जो पॉलीइथाइलीन प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकड़े होते हैं, इन्हें स्वास्थ्य और सौंदर्य उत्पादों जैसे- क्लीन्जर और टूथपेस्ट में एक्सफोलिएंट के रूप में शामिल किया जाता है। ये छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन तंत्र के माध्यम से गुजरते हैं और समुद्र तथा झीलों में समा जाते हैं।
समुद्री प्लास्टिक कचरे से संबंधित चिंताएँ
प्लास्टिक कचरा सीवरों को अवरुद्ध करता है, समुद्री जीवन को खतरे में डालता है और लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में निवासियों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।
समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की वित्तीय लागत भी काफी महत्त्वपूर्ण है। मार्च 2020 में किये गए पूर्वानुमान के अनुसार, समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ की ‘ब्लू इकॉनोमी’ को प्रत्यक्ष तौर पर प्रतिवर्ष 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा। आर्थिक लागत के साथ-साथ समुद्री प्लास्टिक कचरे की सामाजिक लागत भी काफी भारी होती है। तटीय क्षेत्रों के निवासी प्लास्टिक प्रदूषण और ज्वार द्वारा लाए गए कचरे के हानिकारक स्वास्थ्य प्रभावों से सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।
प्रायः यह देखा जाता है कि नावें मछली पकड़ने के जाल में फँस जाती हैं या उनके इंजन प्लास्टिक के मलबे से ब्लॉक हो जाते हैं। यह नौवहन, मत्स्य पालन, जलीय कृषि और समुद्री पर्यटन जैसे उद्योगों के लिये समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जो कि तटीय समुदाय की आजीविका को प्रभावित करते हैं।
तेल रिसाव से होने वाला समुद्री प्रदूषण (Ocean Pollution)
समुद्रों का दूसरा प्रमुख प्रदूषक तेल है। तेल का अधिकांश परिवहन समुद्रों के माध्यम से होता है। इनके दुर्घटनाग्रस्त होने या इनके रिसाव से बड़ी मात्रा में तेल समुद्र में बिखर जाता है। लगभग 300 मिलियन गैलन तेल का प्रतिवर्ष समुद्र में रिसाव होता है। समुद्र में सीधे ही अथवा नदियों के माध्यम से मिलने वाले अपशिष्ट का 80 प्रतिशत, ड्रेजिंग द्वारा 10 प्रतिशत, औद्योगिक अपशिष्ट एवं सीवेज स्लज 9 प्रतिशत होता है।
दुनियाभर में तेल का अधिकांश परिवहन समुद्रों से होता है। तेल परिवहन में उपयोग में आने वाले टैंकर एवं सुपर टैंकर से बड़ी मात्रा में तेल परिवहन के दौरान रिसाव होता है। इसके साथ ही समुद्र तट पर पेट्रोलियम तेल के उत्खनन के दौरान भी तेल की बड़ी मात्रा समुद्र में मिल जाती है। अनुमानतः 10 लाख टन तेल के समुद्री परिवहन के दौरान लगभग एक टन तेल का रिसाव होता है। इसके अतिरिक्त समुद्री तूफानों के आने से भी बड़ी मात्रा में परिवहन किया जा रहा तेल समुद्र जल में जा मिलता है।
समुद्री प्रदूषण (Ocean Pollution) को रोकने के उपाय
ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट: इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन’ (IMO) और ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा लॉन्च किया गया है और इसका प्रारंभिक वित्त पोषण नॉर्वे सरकार द्वारा किया गया है। इसका उद्देश्य शिपिंग और मत्स्य पालन उद्योग से होने वाले समुद्री प्लास्टिक कचरे को कम करना है साथ ही यह विकासशील देशों को समुद्री परिवहन और मत्स्य पालन क्षेत्रों से प्लास्टिक कचरे को कम करने में भी सहायता करता है। इसके अलवा यह प्रोजेक्ट प्लास्टिक के पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण के अवसरों की पहचान भी करता है।
समुद्री कचरे से निपटने की इस वैश्विक पहल में भारत समेत 30 देश शामिल हैं। विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की मेजबानी भारत द्वारा की गई थी, जिस दौरान वैश्विक नेताओं ने ‘प्लास्टिक प्रदूषण को हराने’ और इसके उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प लिया था।