कबीर दास के 10 प्रसिध्द दोहे (व्याख्या सहित) | Kabir Das ke dohe Hindi

भारत के महान संत कबीर दास हिंदी भाषा के प्रसिद्द कवि है। कबीर के दोहे (Kabir Das ke dohe) अपनी सरलता के लिए जाने जाते हैं। यह इतने सरल है की आम व्यक्ति भी इन्हे पढ़ कर इनका अर्थ आसानी से समझ सकता है।

ज्यादातर कबीर के दोहे सांसारिक व्यावहारिकता को दर्शाते हैं। संत कबीर का जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भरा हुआ था परंतु फिर भी उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को मिटाने के लिए अपना पूर्ण जीवन लगा दिया। कबीर ने समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वास को मिटाने के लिए दोहे और पद की रचना की, जिनका मुख्य उद्देश्य कुरीतियों पर वार करना था।

Kabir Das ke dohe Hindi
Kabir Das ke dohe Hindi

कबीर दास के प्रसिध्द दोहे | Kabir Das ke dohe Hindi

निंदक नियरे राखिये,आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

Kabir Das ke dohe

अर्थ: संत कबीर दास जी  कहते है कि जो हमारी निंदा करते है , उन्हें अपने सबसे पास रखना चाहिए । क्योकि वे बिना साबुन और पानी के हमेशा  हमारी कमियो को बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करते है ।

ऐसी बानी बोलिये ,मन का आप खोय ।
औरन को शीतल करे ,आपहु शीतल होय ।।

Kabir Das ke dohe

अर्थ : अपने मन में अहंकार को त्याग कर ऐसे नम्र औए मीठे शब्द बोलना चाहिए जिससे सुनने वाले के मन को अच्छा लगे । ऐसी भाषा दूसरों को सुख पहुंचाती है । साथ ही स्वयं  को भी सुख देने वाली होती है ।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।

Kabir Das ke dohe

अर्थ:– कबीरदास जी कहते हैं कि साधु की जाति नहीं होती है। साधु का ज्ञान ही उसका मूल्य, उसकी पहचान होती है। इसलिए साधु की जाति नहीं पूछना चाहिए बल्कि साधु का ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। जिस प्रकार तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का, उसी प्रकार शरीर का नहीं उसमे व्याप्त ज्ञान का मूल्य होता है जो परिश्रम और साधना से ही मिल पता है। इसलिए साधु के जात पात की नहीं उसके ज्ञान की पूजा करनी चाहिए।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

Kabir Das ke dohe

अर्थ:– इस संसार में मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है। यह मानव शरीर बार-बार नहीं मिलता। जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता, उसी प्रकार इस समय का सदुपयोग करो यह समय फिर नहीं आएगा।।

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कबीरदास के दोहे अर्थ सहित हिंदी मे – kabir dohe with meaning in hindi

kabir dohe with meaning in hindi
kabir dohe with meaning in hindi

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।

kabir dohe with meaning in hindi

अर्थ:– कबीर दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार माली भले ही पेड़ में हर दिन सौ घड़े पानी डाले, लेकिन पेड़ पर फल तो सही ऋतु आने पर ही लगते हैं। ठीक उसी प्रकार हम चाहे कितनी भी जल्दबाज़ी कर लें, सही काम उचित समय आने पर ही पूरे होते हैं। इसलिए हमे धीरज से सब काम करने चाइए। जब सही समय आएगा तो आपको अच्छे कामों का फल ज़रूर मिलेगा।

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।

kabir dohe with meaning in hindi

अर्थ:– कबीर जी कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती। तो मनुष्य क्यों इस माया जाल मे फाँसा है।

साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं ।
धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं ॥

kabir dohe with meaning in hindi

अर्थ:– कबीरदास जी कहते है। साधु भाव का भूखा होता है उसका मन केवल भाव को जानता है। वह धन का लोभी नहीं होता, जो धन का लालची  होता है जो बस धन को ही अपना भगवान मानता है वह साधु नहीं हो सकता।

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कबीर दास के दोहे हिंदी मे – kabir das ke dohe in hindi

मन मैला तन ऊजला, बगुला कपटी अंग ।
तासों तो कौआ भला, तन मन एकही रंग ॥

kabir das ke dohe in hindi

अर्थ:– कबीर जी कहते है। जिस मानव का मन काला और शरीर उजला हो, वे बगुले के समान कपटी और खतरनाक होते हैं। ऐसे लोगों से तो कौआ अच्छा है जिसका तन और मन एक जैसे है और वह किसी को छलता भी नहीं है। हमे भी ऐसे मनुष्य का साथी होना चहिए।

चाह मिटी चिंता मिटी ,मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नही चाहिए,वह शहनशाह ।

kabir das ke dohe in hindi

अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में व्यक्ति कों हर चीज पाने की इक्छा  है ,उसे उस चीज को पाने की चिंता है , और मिल जाने पर उसे खो देने की चिंता है ।पर दुनिया में वही खुश है जिसके पास कुछ नही है । उसे खोने का डर नही है । पाने की चिंता नही है । ऐसा व्यक्ति ही दुनिया का राजा है ।

ऐसी बानी बोलिये ,मन का आप खोय ।
औरन को शीतल करे ,आपहु शीतल होय ।

kabir das ke dohe in hindi

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि मन के अहंकार को त्याग कर ऐसे नम्र मीठे शब्द बोलना चाहिए जिससे सुनने वाले के मन को अच्छा लगे और अपने आप को भी अच्छा लगे। ऐसी भाषा दूसरों को सुख पहुंचाती है । साथ ही स्वयं  को भी सुख देने वाली होती है ।

संत ना छोड़े संतई ,कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।।

kabir das ke dohe in hindi

अर्थ : सज्जन व्यक्ति को चाहे करोड़ो दुष्ट पुरुष मिल जाये फिर भी वह अपने सभ्य विचार ,सद्गुण नहीं छोड़ता । जिस प्रकार चंदन के पेड़ से साँप लिपटें रहते है । फिर भी वह अपनी शीतलता नही छोड़ता ।

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